घर के आँगन के पीछे
एक बड़ा सा पेड़
चाँद झांकता पीछे से
जैसे उजली भेड़
फर्श पे बिखरे पानी पर
कभी उतर आता
कभी बादलों से करता
प्यार भरी मुठभेड़
मुझको अक्सर दिखती है
आसमान तक मेड़
एक नन्हा सा गाँव वहाँ
परियों का है ढेर
पँख चुरा कर भागी हूँ
बड़ी मशक्कत से
कितनी बड़ी बहादुर मैं
कितनी बड़ी दिलेर ....... ;)...:)
- रंजना डीन