Sunday, January 29, 2012

चाहत के दरख्त


चाहत के दरख्तों पर
कुछ ख्वाब उगे हैं

कुछ कच्चे हैं, खट्टे हैं
कुछ बढ़ के झुके हैं

कुछ टूट कर गिरे हैं
उगने के साथ ही

कुछ हैं अभी डाली पर
बढ़ने को रुके हैं

कुछ पत्तियों से हल्के
झोकों से ढह गए

कुछ ओस में भीगे और
बारिश में बह गए

कुछ ने रुलाया इतना
की नम हुआ मौसम

कुछ लब बिना हिलाए
हर बात कह गए

कुछ झेल कर तपिश को
मुरझाने लगे हैं

कुछ मुस्कुरा कर सारे
तूफ़ान सह गए

Friday, January 20, 2012

बारिश की नासमझी

बारिश की नासमझी देखो
भिगो गयी हर भीगा कोना

जो सूखा था, वो सूखा है
न आंसू न कोई रोना

रेशे उसके सख्त हो गए
जो था पहले नर्म बिछौना

झूठ किसी ने बोला ऐसा
सच का कद लगता है बौना

जो देखा करते थे पहले
झिलमिल रातें, ख्वाब सलोना

आंखे उनकी भूल गयी है
किसको कहती थी वो सोना

Tuesday, January 17, 2012

कुछ यादें कभी नहीं गुज़रती


आज फिर गुजरी हूँ
गोमती के उसी पुल से
जहाँ से आप और मै
सालों तक गुज़रते रहे
आपकी साईकिल पर आगे बैठी मै
दो चोटी और छोटी सी फ्राक पहने
पूछती रहती थी दुनिया भर के सवाल
छोटी छोटी बातों पर मचाती थी बवाल
और आप देते थे बिना थके सारे जवाब
कभी सच्ची बातें, कभी झूठे से ख्वाब
आज भी वही गोमती का किनारा
वही सड़कें वही नज़ारा
किनारे पर लगे हुए वही पेड़
वही बहती हुई नदी, वही मेड़
साईकिल की जगह कार है
परिवार का ढेर सारा प्यार है
आज मै बच्ची नहीं माँ हूँ
ढेर सारे रिश्तों का मान हूँ
सबकुछ है वैसा ही जैसा होना चाहिए
पर ये रास्ता आज भी रुलाता है
आपकी याद दिलाता है
वक़्त गुज़र गया पापा
पर कुछ यादें कभी नहीं गुज़रती

Sunday, January 8, 2012

मेरे हर एक दर्द को तुम अपना लेते हो



मेरे हर एक दर्द को तुम अपना लेते हो
मै जब रोती हूँ मेरे संग गा लेते हो
स्वाद भरा हो या हो बिलकुल बेढंगा सा
प्यार से जो भी देती हूँ वो खा लेते हो
कितनी भी बातें कर लूँ मै उलटी सीधी
सुन लेते हो सबकुछ, और समझा देते हो
गुस्सा किसको कहते हैं ये तुम क्या जानो
मेरे गुस्से को हंसकर सुलझा लेते हो
काम कोई रह जाये गर कुछ कही अधूरा
बिना मदद के खुद ही सब निपटा लेते हो
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बहुत देर से देख रही थी मै ये सपना
तुम आते हो चाय के लिए जगा देते हो

ये सब सिर्फ सपने में संभव है...:)