Friday, September 17, 2010

दर्द देखा जब तुम्हारा गर्द सा सबकुछ लगा
गुनगुनी सी शाम में भी सर्द सा सबकुछ लगा

5 comments:

  1. ये हक़ीकत है समाज की .... कितना मज़ा आता है दूसरों को दर्द देकर ...
    संवेदनशील नज़्म है ....

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  2. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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