Saturday, July 17, 2010

ख्वाहिशें और सपने


छोटी छोटी ख्वाहिशें लिख लेती थी
कागज़ की रंग बिरंगी पुर्चियों पर
और लिखते लिखते जमा होता गया
पुर्चियों का खज़ाना

पर आज की बारिश न जाने
क्या कह गयी धीरे से कानो में
और उन पुर्चियों से
नन्ही नन्ही नाव बनाकर
बहा दी मैंने खिलखिलाते पानी में

ये सोच कर की
ख्वाहिशें और सपने
समेट कर रखने से नहीं
आजाद छोड़ देने से पूरे होते हैं

और उन रंग बिरंगी पुर्चियों से
बनी इन्द्रधनुषी नावें
चल पड़ी हैं अपनी अपनी धाराएँ
अपनी अपनी मंजिले तलाशने

आज ख्वाहिशें और सपने आजाद हैं
और लहरों का पानी रंगीन
शायद मिल जाये उन्हें
अपना आसमान, अपनी ज़मीन.




Saturday, July 10, 2010

चुप सी थी वो शुरू से...


चुप सी थी वो शुरू से...
धीरे धीरे उगने लगे शब्द..
उसकी जुबान पर,
और चहचहाना शुरू किया उसने.
और पंखो को फ़ैलाने की कोशिश में...
पार किये उसने छोटे छोटे रास्ते,
ये छोटे छोटे रास्ते तय करते करते...
एक दिन पंहुच गयी वो एक ऊँची से पहाड़ पर.
पर उस पहाड़ पर देखा उसने...
खुद तो सबसे ऊँचा दिखाने के लिए,
लोग दे रहे थे धक्के एक दूसरे को.
वो हैरान सी देखती रही...
खुद को ऊँचा बनाये रखने के इस तरीके को,
और सोचती रही आगे बढूँ या नहीं?
फिर वो धीरे से मुड़ गयी एक नयी राह की और...
और रखनी शुरू की नन्ही ईंटे,
मेहनत की, इमानदारी की, सच्चाई की.
देर से सही, थोडा कम ऊँचा ही सही...
पर अब वो भी है एक पहाड़ की ऊंचाई पर,
लेकिन उसे सुकून है इस बात का...
की जब वो देखती है उस पहाड़ी से नीचे,
तो उसे कोई भी ऐसा नहीं दीखता...
जिसे धक्का देकर हासिल की उसने ये ऊंचाई.
उसे सिर्फ दिखाई देती है उसकी मेहनत
और उस मेहनत की गाढ़ी कमाई.

Tuesday, July 6, 2010

मै हूँ, पास नहीं दूर ही सही!!!


मै महसूस कर रही हूँ
मौसम की नमी
जो उपजी है शायद तुम्हारे आंसुओं से
जब ये बढती है
तो उभर आती है कुछ बूंदे
मन की दीवारों पर
और टपक पड़ती हैं यहाँ वहाँ
मै नहीं आ सकती अब
तुम्हारे आंसू पोछने
क्योंकि एक पेड़ की तरह
बांध लिया है मैंने खुद को
अपनी जड़ों से
लेकिन मेरे पत्तों से छनती हवा
अभी भी चाहती है
सुखाना तुम्हारे आंसुओं को
तभी तो फूँक मार रही है लगातार
तुम्हारी आँखों के नम कोरों पर
और कह रही है मै हूँ
पास नहीं दूर ही सही