Wednesday, September 23, 2009

गुजारिश है उनको ख़बर कर दे मौला...

जिन्हें आजतक ये ख़बर हो न पाई ;

खुदा एक सबका, खुदा नेक सबका ...

इसी सोच में है सभी की भलाई .

Tuesday, September 1, 2009

जिंदगी

बैठी अकेली सोचती हूँ जिंदगी क्या चीज़ है…
मन में दबी सी चाहतों की अनमनी सी खीज है,

सपने बहुत, चाहत बहुत, पर कौन पूरी कर सका
है ख्वाब सबके एक से, पर सबने सबसे है ढका।

क्यों सोचते इतना है हम दुनिया कहेगी क्या भला...
है जख्म मेरे जिस्म के तो दर्द भी मैंने सहा।

आओ करे कुछ ख्वाब पूरे छोड़ कर दुनिया के गम....
बस आज हे है जिंदगी, कल जाने हो या न हो हम.

हर लम्हा घुलता जाता है

हर लम्हा घुलता जाता है...

कच्चे रंग की दीवारों सा बारिश में घुलता जाता है।


हर लम्हा उड़ता जाता है...

आवारा क़दमों के जैसा अनजान गली मुड़ जाता है।


हर लम्हा कुछ कुछ कहता है...

कोशिश रुकने की करता है फिर भी ये बहता रहता है।


हर लम्हा ख्वाब सजाता है...

कुछ पूरे भी हो जाते हैं, कुछ आधा सा रह जाता है।


हर लम्हा अंजाना सा है...

पल में पहचान बढाता है, आता है और खो जाता है।


हर लम्हे को जी कर देखा...

और जाना इसका जाना है, क्यों अपना इसको माना है।


जी लो जी भरकर अभी इसे...

ये वापस फिर न आना है, खोने से पहले पाना है.