Friday, August 14, 2009

जन्नत

बहुत खुशकिस्मत है वो धूप ,
जो चूमती है मेरे घर के आँगन को …

बहुत खुशकिस्मत है वो हवा ,
जो फूँक मरकर उडाती है मेरे घर के परदों को …

बहुत खुशकिस्मत है वो बारिश ,
जो भिगोती है मेरे घर के फर्श , दीवारों और पेडों को …

क्योंकि ज़मीन पर जन्नत को चूने का मौका ,
हर किसी को नही मिलता .

कभी खुल कर जिंदगी से हाथ मिलाना

कभी खुल कर जिंदगी से हाथ मिलाना
वो जैसी है उसे वैसे ही अपनाना
मत टटोलना उसके अन्दर की छुपी बुराइयों को
उसके बेसुरेपन को सुर में गुनगुनाना

उसकी कड़वाहट में कुछ मिठास घोलना
उसकी बाँहों को थाम आहिस्ता से डोलना
उसकी आँखों में आँखे डालकर उसे समझना
जब भी बोलना कुछ अपना सा बोलना

देखना धीरे धीरे जिंदगी सुर में गुनगुनायेगी
हर बिगड़ी हुई बात अपनेआप बन जायेगी
तुम सोचते रह जाओगे ये हुआ कैसे??
और वो कोने में खड़ी तुम्हे देख कर मुस्कुराएगी